रविवार, 3 मार्च 2019

मुक्तक 601/605

601
अन्तस् का  उजास है ।
रीती सी       प्यास है ।
चित्त विलोके अन्तर्मन,
हृदय अनन्त आकाश है ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

602
समझ आये न आये चाहे किसी को ।
समझना तो है मगर ज़िन्दगी को ।
भूलता चला चल कल के साथ को,
जो आज है करता चल कल उसी को ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@..

603
मन ने फिर कुछ आज लिखा है ।

जाने क्या फिर आज लिखा है ।
शब्द तले फिर शब्द टिका है ।
अर्थो के एक शान्त सरोवर मे,
अभिव्यक्ति का सलिल भरा है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
604

2122 1212 22

चाह से होंसला खिला होगा ।
जो मुसाफ़िर जहां चला होगा ।
रोकता चाह चाह के वास्ते ,
चाँद भी अस्र तले मिला होगा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

605

2122 1212 22

चाह से होंसला मिला होगा ।
जो मुसाफ़िर जहां चला होगा ।
रोकता राह चाह के वास्ते ,
चाँद भी हिज्र तले ढला होगा ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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