ज़िस्म जुबां लफ्ज़ संग न था ।
हुस्न जुबां निग़ाह तंग न था ।
मचलता था दरिया आगोश में,
अशआर ग़जल बे-रंग न था ।
कह गया बात मुसलसल वो ,
नज़्म कहने का उसे ढंग न था ।
बिखरे थे जो अल्फ़ाज़ सभी ,
वो कोई हालात-ए-जंग न था ।
जलती रही शमा ख़ुद आप ही ,
जलने को साथ कोई पतंग न था ।
ख़ामोश थे सभी महफ़िल में ,
"निश्चल" कही कोई उमंग न था ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(127)
हुस्न जुबां निग़ाह तंग न था ।
मचलता था दरिया आगोश में,
अशआर ग़जल बे-रंग न था ।
कह गया बात मुसलसल वो ,
नज़्म कहने का उसे ढंग न था ।
बिखरे थे जो अल्फ़ाज़ सभी ,
वो कोई हालात-ए-जंग न था ।
जलती रही शमा ख़ुद आप ही ,
जलने को साथ कोई पतंग न था ।
ख़ामोश थे सभी महफ़िल में ,
"निश्चल" कही कोई उमंग न था ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(127)
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