कुछ पल ठहरे से ।
यादों के घेरे से ।
कदमों की आहट पे ,
वक़्त के पहरे से ।
रीत रही है रिक्त निशा ,
भोर तले धुंधले चेहरे से ।
लुप्त हुए अंबर से टूटे तारे ,
पहले धरती को छू लेने से ।
उदित हुआ रवि शीतल फिर ,
गगन पथ तपने के पहले से ।
ऋतु राज के जाते ही ,
अविनि करवट बदले होले से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
यादों के घेरे से ।
कदमों की आहट पे ,
वक़्त के पहरे से ।
रीत रही है रिक्त निशा ,
भोर तले धुंधले चेहरे से ।
लुप्त हुए अंबर से टूटे तारे ,
पहले धरती को छू लेने से ।
उदित हुआ रवि शीतल फिर ,
गगन पथ तपने के पहले से ।
ऋतु राज के जाते ही ,
अविनि करवट बदले होले से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
1 टिप्पणी:
बहुत खूब
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