शनिवार, 9 जून 2018

मूक्तक 392/393

392
न जीत लिखूँ न हार लिखूँ ।
 न प्रीत लिखूँ न प्यार लिखूँ ,
 हर दिन धटते बढ़ते चँदा से , 
 मैं बस जीवन हालात लिखूँ ।
..... 
393
राष्ट्र प्रेम को गढ़कर ।
 मधु नेह की भरकर ।
 श्रृंगार कर तू अपना ,
 निज स्वार्थ को तजकर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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