392
न जीत लिखूँ न हार लिखूँ ।
न प्रीत लिखूँ न प्यार लिखूँ ,
हर दिन धटते बढ़ते चँदा से ,
मैं बस जीवन हालात लिखूँ ।
.....
393
राष्ट्र प्रेम को गढ़कर ।
मधु नेह की भरकर ।
श्रृंगार कर तू अपना ,
निज स्वार्थ को तजकर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
न जीत लिखूँ न हार लिखूँ ।
न प्रीत लिखूँ न प्यार लिखूँ ,
हर दिन धटते बढ़ते चँदा से ,
मैं बस जीवन हालात लिखूँ ।
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राष्ट्र प्रेम को गढ़कर ।
मधु नेह की भरकर ।
श्रृंगार कर तू अपना ,
निज स्वार्थ को तजकर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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