शनिवार, 9 जून 2018

मुक्तक 410/413

410
क़ुसूर बस इतना रहा ।
बे-क़ुसूर मैं अदना रहा ।
न बढ़ा कद फरेब का ,
सच तले मैं चलता रहा ।
411
मुस्कुराते है अब हम हिसाब से ।
जीना है हमे दुनियाँ के रिवाज़ से ।
खुलकर ख़ुशी बयां करे कैसे ,
जीते है अब हम बड़े आदाब से ।
412
सोचो बस तुम आज को ।
भूल जाओ बीती बात को ।
न करो फ़िक़्र आते कल की ,
बस जिओ पूरा आज को ।
413
खोया ख़यालों में अक्सर ।
बंद सवालों में अक्सर ।
 हारकर खुद ही खुद से ,
 जीत जाता मैं अक्सर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

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