शनिवार, 9 जून 2018

मुक्तक 420/423

420
अहसास हुआ वक़्त की कमी का ।
 आभास हुआ वक़्त की जमीं का ।
 रंग ले हर पल खुशियों के रंग से , 
 अंदाज़ यही ज़िंदगी-ऐ-तिश्निगी का ।
.421
वो कोई    अदावत नही थी ।
 हुस्न से   शिकायत नही थी ।
 हुआ रुसवा जिस निगाह से ,
 वो निगाह-ऐ-शरारत नही थी ।
...
422
न सिद्ध हूँ न प्रसिद्ध हूँ मैं ,
 न चाहत है शिरोधार्य की ।
लिखता रहूँ अंत समय तक ,
 बनी रहे धार कलम तलवार की ।
... 
423
 तू न तोड़ इन होंसलों को ।
 तू बुन ख़याल घोंसलों को ।
 तिनका तिनका जोड़ता जा ,
 दे आवाज़ अपने मुर्शिदों को ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..

मुर्शिद - रास्ता दिखाने बाला /पूज्य व्यक्ति/सही राह पर प्रेरित करने बल

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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