961
आदतें है की बदलती नही ,
कहते है वो के हम बदल गये है ।
थोपकर अंदाज हम पे अपना ,
इल्जाम ये के हम तुझमे ढल गये है ।
....."निश्चल"@..
962
हार रहा मन मन के आगे ।
प्रश्न खड़ा जीवन के आगे ।
आशाओं की भूल भुलैया में,
तम छाया चितवन के आगे ।
...."निश्चल"@..
963
आस की प्यास भी जरूरी है ।
इतना अहसास भी जरूरी है ।
आकांक्षाओं का घट भरने को ,
भाग्य का पास भी जरूरी है ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@..
964
बदला न मिज़ाज कही,
इतनी ही कैफ़ियत यही ।
हार में और हर जीत में ,
के एक सी हैसियत रही ।
...."निश्चल"@..
965
रूह जिस्म की पहचान बनी ।
उस रब से इतनी शान बनी ।
पहुँचाता रहा मंजिल पर जो,
उस मुर्शिद से ही अंजान बनी ।
....."निश्चल"@....
डायरी 7
Blogpost 22/2/21
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