रविवार, 14 फ़रवरी 2021

मुक्तक 961/65

 961

आदतें है की बदलती नही ,

कहते है वो के हम बदल गये है ।

थोपकर अंदाज हम पे अपना ,

इल्जाम ये के हम तुझमे ढल गये है ।

....."निश्चल"@..

962

हार रहा मन मन के आगे ।

प्रश्न खड़ा जीवन के आगे ।

आशाओं की भूल भुलैया में,

तम छाया चितवन के आगे ।

...."निश्चल"@..

963

आस की प्यास भी जरूरी है ।

इतना अहसास भी जरूरी है ।

आकांक्षाओं का घट भरने को ,

भाग्य का पास भी जरूरी है ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@..

964

बदला न मिज़ाज कही,

इतनी ही कैफ़ियत यही ।

हार में और हर जीत में ,

के एक सी हैसियत रही ।

...."निश्चल"@..

965

रूह जिस्म की पहचान बनी ।

उस रब से इतनी शान बनी ।

पहुँचाता रहा मंजिल पर  जो,

उस मुर्शिद से ही अंजान बनी ।

....."निश्चल"@....

डायरी 7

Blogpost 22/2/21

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