शनिवार, 20 फ़रवरी 2021

खत्म हुआ अब सब

 


खत्म हुआ अब सब , 

बस फ़र्ज निभाना बाँकी है ।


जीवन के मयखाने में तू , 

खुद ही खुद का साकी है ।


मदहोश नही है रिंद यहाँ  ,

फिर भी उसको होश नही ,


 सुध खोई रिश्तों की मय पीकर ,

 बस इतना ही ग़ाफ़िल काफी है ।


सोमपान सा रिश्तों का रस ,

जिस मद के अपने ही साथी है ।


 आती मयख़ाने में रूह रात बिताने को,

 लगती जिस्मों में रिश्ते नातों की झाँकी है ।


...विवेक दुबे"निश्चल"@....


1006

प्यार का इज़हार कर न सका ।

दर्द का व्यापार कर न सका ।

हारता रहा हालात से हरदम,

झूँठ पे इख्तियार कर न सका ।

......विवेक दुबे"निश्चल"@...


डायरी 7

Blog post 20/2/21

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