खत्म हुआ अब सब ,
बस फ़र्ज निभाना बाँकी है ।
जीवन के मयखाने में तू ,
खुद ही खुद का साकी है ।
मदहोश नही है रिंद यहाँ ,
फिर भी उसको होश नही ,
सुध खोई रिश्तों की मय पीकर ,
बस इतना ही ग़ाफ़िल काफी है ।
सोमपान सा रिश्तों का रस ,
जिस मद के अपने ही साथी है ।
आती मयख़ाने में रूह रात बिताने को,
लगती जिस्मों में रिश्ते नातों की झाँकी है ।
...विवेक दुबे"निश्चल"@....
1006
प्यार का इज़हार कर न सका ।
दर्द का व्यापार कर न सका ।
हारता रहा हालात से हरदम,
झूँठ पे इख्तियार कर न सका ।
......विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 7
Blog post 20/2/21
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