994
एक चित्र उभार ले ।
हृदय राम उतार ले ।
सहज सब हो जायेगा ,
प्रीत राम निखार ले ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..
995
तृष्णा हो हरि नाम की ,ऐसा हो मन का भाव ।
पा जायेगा सब आप ही, हरि हो जब साथ ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
रायसेन
996
माँ कैसी है तू ,इतना तो पूछा जा सकता है ।
इस दुनियाँ में, इतना वक़्त तो पा सकता है ।
स्वर्थ भरी दुनियाँ में,साथ रहे न जब कोई ,
माँ के आँचल में,जब चाहे तब आ सकता है ।
......विवेक दुबे"निश्चल"@....
997
कुछ कब होता है ।
कुछ कब होना है ।
छूट रहे कुछ प्रश्नों में ,
एक प्रश्न यही संजोना है ।
गूढ़ नही कुछ कोई ,
रजः को रजः पे सोना है ।
-----
998
हे अज्ञान ज्ञान के बासी ।
तू खोज रहा मथुरा काशी ।
तुझे श्याम मिलेंगे मन भीतर ,
तेरा मन देखे जिसकी झांकी ।
.
... विवेक दुबे"निश्चल"@.
डायरी 7
999
चन्द्रिका छंद
विधान-111, 111, 221, 221, 2
सुमिरन मन से राम का कीजिये ।
सहज कर सभी श्याम पे रीझिये ।
सजल नयन राधा रटे श्याम को ।
सरल बन मिला मोहना राम सो ।
.. विवेक दुबे"निश्चल"@...
1000
चंद्रिका छंद
111 111 2 21 221 2
नटखट मुरली ,श्याम तेरी बड़ी ।
सरल मन सखी ,राधिका से डरी ।
सजल नयन से , श्याम राधा यहीं ।
चित बिसरत सो, आज ढूंढे कहीं ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें