रविवार, 16 दिसंबर 2018

"निश्चल"यहाँ मगर शामिल नही होता


हालात से इंसां आदिल नही होता ।
आप से कभी,फ़ाज़िल नही होता ।

भींगाता है लहर-ए-समंदर से जो ,
वो समंदर मगर साहिल नही होता ।

चलता है आफ़ताब रोशनी को लेकर ,
साँझ के मंजर का क़ातिल नही होता ।

है भटकता सा एक चाँद आसमां में ,
सितारों सा मुक़ा हांसिल नही होता ।

बहता है चीरकर दरिया जमीन को  ,
मंजिल से मगर,ग़ाफ़िल नही होता ।

 आता है वास्ते दुनियाँ की खुशी के ,
"निश्चल"यहाँ मगर शामिल नही होता ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

आदिल/न्याय क़रने बल
फ़ाज़िल/खुद विद्वान
ग़ाफ़िल/ असावधान

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