हालात से इंसां आदिल नही होता ।
आप से कभी,फ़ाज़िल नही होता ।
भींगाता है लहर-ए-समंदर से जो ,
वो समंदर मगर साहिल नही होता ।
चलता है आफ़ताब रोशनी को लेकर ,
साँझ के मंजर का क़ातिल नही होता ।
है भटकता सा एक चाँद आसमां में ,
सितारों सा मुक़ा हांसिल नही होता ।
बहता है चीरकर दरिया जमीन को ,
मंजिल से मगर,ग़ाफ़िल नही होता ।
आता है वास्ते दुनियाँ की खुशी के ,
"निश्चल"यहाँ मगर शामिल नही होता ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
आदिल/न्याय क़रने बल
फ़ाज़िल/खुद विद्वान
ग़ाफ़िल/ असावधान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें