कुछ लाज़वाब शे'र कह उसने डाले ।
हर जवाब में सवाल जिसने उछाले ।
कहता ही रहा वो हक़ीक़त अपनी ,
ख़्वाब हसीं कभी नही किसने पाले ।
रिसकर आते ही रहे वो दर्द जुबां ,
सख़्त अल्फ़ाज़ तले पिसने बाले ।
करता रहा सफ़र उम्मीद के सहारे ,
भोर के सितारे अब है मिलने बाले ।
चला है मुक़म्मिल वास्ते सफ़र के ,
रोकते रहे सफ़र पांव रिसने छाले ।
दूर से सितारे वो इस आसमां के ,
"निश्चल"है ये चलते दिखने बाले ।
... विवेक दुबे "निश्चल"@...
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