गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

"निश्चल"मन तन सँग साथ बड़े है ।

शब्द हीन संवाद गढ़े है ।
दृष्टि ने कुछ भाव पढ़े है ।

प्रणय निवेदन सी चितवन,
नयनों से वो नयन लड़े हैं ।

झंकारित सुर ताल हृदय के ,
वो दो पल अनमोल बड़े हैं ।

रिक्त नही मन उपवन कोना ,
मन आँगन कुसुम सुगंध झड़े हैं ।

बंधन ये जनम जनम के ,
पल्लब फिर एक हाथ जड़े हैं ।

मिलन नया फिर इस जीवन का ,
"निश्चल"मन तन सँग साथ बड़े है ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

(पल्लब/ एक तरह का कंगन)

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