मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

जो कुछ रहा , वो न कुछ रहा ।


जो कुछ रहा , वो न कुछ रहा ।
वो फक़त इतना, ही कुछ रहा ।
सिमेटकर  ,   फांसले दिल के ,
ख़ामोश निग़ाह , जो ख़ुश रहा ।
.....
जो सँग संग रहा ।
वो दिल तंग रहा ।

उन चाहतों का  ,
बा-खूब ढंग रहा ।

बे-खोफ निग़ाहों का ,
 ये मशहूर रंग रहा ।

  सुलह की खातिर ,
  करता इरादा जंग रहा ।

इंतज़ार इख़्तियार का ,
इज़हार बे-रंग रहा ।

एक निग़ाह-ए-सर्द से ,
"निश्चल" जलता अंग रहा ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@...



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