गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

चल तेज तेज कदमों से,

चल तेज तेज कदमों से, कदमों के आगे ।
रात धरा से मिलकर ,दिनकर को मांगे ।

सहज रही है साँझे, जिसकी रश्मि को , 
क्षितिज तले भरकर, रातों की बाहें ।

चंद्र चलेगा चंचलता से, जिसको लेकर ,
मचल चाँदनी यौवन ,रूप धरा का मांगे ।

निहार बिखेर चली,यामिनी वसुधा पर ,
रूप सलोना,अंग अंग वसुधा का साजे ।

सकल नियति शृष्टि, सजती पल पल ,
क्षण क्षण रूप नया , सा गढता जावे ।

चलता है एक क्रम ,जीवन का क्रम से ,
कदम कदम ,जीवन जो चलता आगे ।

पाता है जीव ज़रा , जरा लांघकर ,
बाल युवा योवन भी, ढलता जावे ।


         ...विवेक "निश्चल"@....

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...