चल तेज तेज कदमों से, कदमों के आगे ।
रात धरा से मिलकर ,दिनकर को मांगे ।
सहज रही है साँझे, जिसकी रश्मि को ,
क्षितिज तले भरकर, रातों की बाहें ।
चंद्र चलेगा चंचलता से, जिसको लेकर ,
मचल चाँदनी यौवन ,रूप धरा का मांगे ।
निहार बिखेर चली,यामिनी वसुधा पर ,
रूप सलोना,अंग अंग वसुधा का साजे ।
सकल नियति शृष्टि, सजती पल पल ,
क्षण क्षण रूप नया , सा गढता जावे ।
चलता है एक क्रम ,जीवन का क्रम से ,
कदम कदम ,जीवन जो चलता आगे ।
पाता है जीव ज़रा , जरा लांघकर ,
बाल युवा योवन भी, ढलता जावे ।
...विवेक "निश्चल"@....
रात धरा से मिलकर ,दिनकर को मांगे ।
सहज रही है साँझे, जिसकी रश्मि को ,
क्षितिज तले भरकर, रातों की बाहें ।
चंद्र चलेगा चंचलता से, जिसको लेकर ,
मचल चाँदनी यौवन ,रूप धरा का मांगे ।
निहार बिखेर चली,यामिनी वसुधा पर ,
रूप सलोना,अंग अंग वसुधा का साजे ।
सकल नियति शृष्टि, सजती पल पल ,
क्षण क्षण रूप नया , सा गढता जावे ।
चलता है एक क्रम ,जीवन का क्रम से ,
कदम कदम ,जीवन जो चलता आगे ।
पाता है जीव ज़रा , जरा लांघकर ,
बाल युवा योवन भी, ढलता जावे ।
...विवेक "निश्चल"@....
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