रविवार, 16 दिसंबर 2018

जिंदगी जिंदा निशानों सी ।


जिंदगी जिंदा निशानों सी ।
रही उम्र की पहचानों सी ।

गुजरती रही हर हाल में ,
कायम रहे अरमानों सी ।

खोजती निग़ाह नज्र को ,
कुछ अपने ही गुमानों सी ।

 चली मुख़्तसर सफर पर ,
 यक़ी खोजती इमानों सी ।

मिली फ़िक़्र के वास्ते यूँ ,
ज़िस्म मकां मेहमानों सी ।

जूझती हरदम हालात से ,
 रही जंग के मैदानों सी ।

 अल्फ़ाज़ लिखे मुसलसल ,
"निश्चल" कलम दीवानों सी ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

मुख़्तसर/ संक्षिप्त /अल्प

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