जिंदगी जिंदा निशानों सी ।
रही उम्र की पहचानों सी ।
गुजरती रही हर हाल में ,
कायम रहे अरमानों सी ।
खोजती निग़ाह नज्र को ,
कुछ अपने ही गुमानों सी ।
चली मुख़्तसर सफर पर ,
यक़ी खोजती इमानों सी ।
मिली फ़िक़्र के वास्ते यूँ ,
ज़िस्म मकां मेहमानों सी ।
जूझती हरदम हालात से ,
रही जंग के मैदानों सी ।
अल्फ़ाज़ लिखे मुसलसल ,
"निश्चल" कलम दीवानों सी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
मुख़्तसर/ संक्षिप्त /अल्प
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