पता नही माँ क्या करती होगी ।
ख़्याल अधूरे जब धरती होगी ।
कुछ यादों में मुझे सजाकर ,
नैन तले जल भरती होगी ।
फ़िर चुरा निगाहें चुपके से ,
खुद पे खुद हँसती होगी ।
सहज रही होगी यादों को ,
कुछ कपड़ो से लिपटी होगी ।
तह करती सी बड़े जतन से ,
सहज सहज कर धोती होगी ।
मिली किताब किसी कोने में,
जिल्द उसे ही करती होगी ।
दरवाजे पर मेरी आहट को ,
दौड़ चली आ सुनती होगी ।
खड़ी साँझ श्याम के आगे ,
विनय स्वर पिरोती होगी ।
लौट चले समय समय में पीछे,
बार बार समय से कहती होगी ।
उठकर बार बार रातों को ,
खाली लिहाफ़ तटोती होगी ।
पल्लू को आँचल में रखकर ,
पल्लू से ही ढँकती होगी ।
वो थाल रहा अधूरा सा ,
किससे जूठन चुनती होगी ।
पता नही माँ क्या करती होगी ।
ख़्याल अधूरे जब धरती होगी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
ख़्याल अधूरे जब धरती होगी ।
कुछ यादों में मुझे सजाकर ,
नैन तले जल भरती होगी ।
फ़िर चुरा निगाहें चुपके से ,
खुद पे खुद हँसती होगी ।
सहज रही होगी यादों को ,
कुछ कपड़ो से लिपटी होगी ।
तह करती सी बड़े जतन से ,
सहज सहज कर धोती होगी ।
मिली किताब किसी कोने में,
जिल्द उसे ही करती होगी ।
दरवाजे पर मेरी आहट को ,
दौड़ चली आ सुनती होगी ।
खड़ी साँझ श्याम के आगे ,
विनय स्वर पिरोती होगी ।
लौट चले समय समय में पीछे,
बार बार समय से कहती होगी ।
उठकर बार बार रातों को ,
खाली लिहाफ़ तटोती होगी ।
पल्लू को आँचल में रखकर ,
पल्लू से ही ढँकती होगी ।
वो थाल रहा अधूरा सा ,
किससे जूठन चुनती होगी ।
पता नही माँ क्या करती होगी ।
ख़्याल अधूरे जब धरती होगी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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