गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

पता नही माँ क्या करती होगी ।

पता नही माँ क्या करती होगी ।
ख़्याल अधूरे जब धरती होगी ।

कुछ यादों में मुझे सजाकर ,
नैन तले जल भरती होगी । 

 फ़िर चुरा निगाहें चुपके से ,
 खुद पे खुद हँसती होगी ।

सहज रही होगी यादों को ,
कुछ कपड़ो से लिपटी होगी ।

तह करती सी बड़े जतन से ,
सहज सहज कर धोती होगी ।

मिली किताब किसी कोने में,
जिल्द उसे ही करती होगी ।

दरवाजे पर मेरी आहट को ,
दौड़ चली आ सुनती होगी ।

खड़ी साँझ श्याम के आगे ,
विनय स्वर पिरोती होगी ।

लौट चले समय समय में पीछे,
बार बार समय से कहती होगी ।

उठकर बार बार रातों को ,
खाली लिहाफ़ तटोती होगी ।

पल्लू को आँचल में रखकर ,
पल्लू से ही ढँकती होगी ।

वो थाल रहा अधूरा सा ,
किससे जूठन चुनती होगी ।

पता नही माँ क्या करती होगी ।
ख़्याल अधूरे जब धरती होगी ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..

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