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सबको आजमा चुके आज तक ।
बस चुप रहे सब अब आज तक ।
पलते रहे जो ख़ुश ख़्याल दिल मे ,
"निश्चल"रहे मुगालते आज तक ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@.....
850
अपने ही अरमानों से अब डर लगता है ।
अपनी ही पहचानों से अब डर लगता है ।
अब आदम जात नही जानी पहचानी सी ,
इंसानों के इमानों से अब डर लगता है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..
851
अपने अरमानों से अब डर लगता है ।
अपनी पहचानों से अब डर लगता है ।
आदम जात नही जानी पहचानी सी ,
इंसानी इमानों से अब डर लगता है ।
851/a
मात्रा भार16/14
जिसे देश से प्यार रहा है ,
जान लुटाना वो जाने ।
कर के प्रहार हर शत्रु पे ,
ख़ाक मिलाना वो जाने ।
बरसती गोलियां सीमा पर,
ज़िस्म झेलता हो जिन्हें ,
लपेटकर तिरंगा बदन से,
ज़िस्म सजाना वो जाने ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
Blog post 30 /10/19
सबको आजमा चुके आज तक ।
बस चुप रहे सब अब आज तक ।
पलते रहे जो ख़ुश ख़्याल दिल मे ,
"निश्चल"रहे मुगालते आज तक ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@.....
850
अपने ही अरमानों से अब डर लगता है ।
अपनी ही पहचानों से अब डर लगता है ।
अब आदम जात नही जानी पहचानी सी ,
इंसानों के इमानों से अब डर लगता है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..
851
अपने अरमानों से अब डर लगता है ।
अपनी पहचानों से अब डर लगता है ।
आदम जात नही जानी पहचानी सी ,
इंसानी इमानों से अब डर लगता है ।
851/a
मात्रा भार16/14
जिसे देश से प्यार रहा है ,
जान लुटाना वो जाने ।
कर के प्रहार हर शत्रु पे ,
ख़ाक मिलाना वो जाने ।
बरसती गोलियां सीमा पर,
ज़िस्म झेलता हो जिन्हें ,
लपेटकर तिरंगा बदन से,
ज़िस्म सजाना वो जाने ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3
Blog post 30 /10/19
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