बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

मुक्तक 849/851

849
सबको आजमा चुके आज तक ।
बस चुप रहे सब अब आज तक ।
पलते रहे जो ख़ुश ख़्याल दिल मे ,
"निश्चल"रहे मुगालते आज तक ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@.....

850
अपने ही अरमानों से अब डर लगता है ।
अपनी ही पहचानों से अब डर लगता है ।
 अब आदम जात नही जानी पहचानी सी ,
 इंसानों के इमानों से अब डर लगता है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..

851
अपने अरमानों से अब डर लगता है ।
अपनी पहचानों से अब डर लगता है ।
 आदम जात नही जानी पहचानी सी ,
 इंसानी इमानों से अब डर लगता है ।

851/a
मात्रा भार16/14

जिसे देश से प्यार रहा है , 
   जान लुटाना वो जाने ।

कर के प्रहार हर शत्रु पे , 
  ख़ाक मिलाना वो जाने ।

 बरसती गोलियां सीमा पर, 
  ज़िस्म झेलता हो जिन्हें , 

लपेटकर तिरंगा बदन से,
 ज़िस्म सजाना वो जाने ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 3
Blog post 30 /10/19

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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