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ये बेचैन है मन ,और खामोश निगाहें ।
सांसों की सरगम पे, सिसकती हैं आहें ।
कैसे रहे कब तलक, कोई जिस्म जिंदा ,
मिलती नहीं अब ,जब जमाने से दुआएं ।
चला था सफर ,हसरतों को सिमटे हुए ,
चाहतों के दर्या ,सामने डुबाने को आयें ।
हो गई कातिल मेरी , वफाएं ही मेरी ,
न आ सके काम,जो अरमा थे लुटाए ।
बेचैन रहा खातिर, जिसके हर घड़ी जो,
"निश्चल" वो दर्द दिल, किसको दिखाएं ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6
ये बेचैन है मन ,और खामोश निगाहें ।
सांसों की सरगम पे, सिसकती हैं आहें ।
कैसे रहे कब तलक, कोई जिस्म जिंदा ,
मिलती नहीं अब ,जब जमाने से दुआएं ।
चला था सफर ,हसरतों को सिमटे हुए ,
चाहतों के दर्या ,सामने डुबाने को आयें ।
हो गई कातिल मेरी , वफाएं ही मेरी ,
न आ सके काम,जो अरमा थे लुटाए ।
बेचैन रहा खातिर, जिसके हर घड़ी जो,
"निश्चल" वो दर्द दिल, किसको दिखाएं ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6
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