बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

स्नेही माँ 859

  859
स्नेही माँ जग बरदायनी ।
  ज्ञानदा धनदा सिद्धिदायनी ।
  कण कण रूप तुम्हारा है ।
  तम हरतीं प्रभा प्रदायनी ।
   ... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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