बुधवार, 30 अक्तूबर 2019

चकित हुआ

 चकित हुआ चलकर ,
 मोन तले बैठा सन्नाटा ।

 आते कल की आशा में,
 जीवन कटता ही पाता ।

  ज़ीवन के इस पथ पर ,
  ज़ीवन एकाकी आता ।

 खोता है कुछ पाकर ,
 खोकर फिर पा जाता ।

 गूंध चला आशाओं को ,
 ले अभिलाषाओं की गाथा ।

 आश्रयहीन रहा नही कभी ,
  देता जाता आश्रय वो दाता ।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(138)
Blog post9/6/19

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...