बुधवार, 29 अगस्त 2018

चल देख लें जरा

 चल देख लें जरा ।
 चल सोच लें जरा ।

  शब्द के  सँग क्यों  ,
  अर्थ रह गया धरा ।

 जीतकर इरादों से ,
  एक शेर था पढ़ा ।

 हारकर इशारों से ,
 काफ़िया था गढ़ा ।

ग़जल-ए-बहारों में,
तख़ल्लुस ना जुड़ा।

 रह गया अधूरा सा ,
 नशा ग़जल ना चढ़ा ।

 सोचता मैं रिंद क्युं ,
 साक़ीया ना मुड़ा ।

 रूठता ना रिंद जो ,
 झूमती मयकदा ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@.
Blog post 17/8/18
डायरी 5(106)

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...