शनिवार, 1 सितंबर 2018

कनक मंजरी छंद मिलकर साथ सभी चलते

*कनक मंजरी छंद*

शिल्प~4लघु+6भगण(211)+1गुरु]=23 वर्ण
 चार चरण समतुकांत]
 {1111+211+211+211 
                      211+211+211+2}

मिलकर साथ सभी चलते , 
    नित सर्जन देश तभी सजते ।
खिलकर साथ तरु फलते, 
     नव पुष्पित बाग सभी सजते ।
बढ़कर राह रहें चलते,
     सत लक्ष्य सही तब ही मिलते ।
गढ़कर प्रीत नई गढ़ते ,
      नव गीत सदा जब ही मिलते । 

बढ़ चल तू चलता चल ,
     साथ सभी कम ही बढ़ते चलते ।
थक कर तू थमता कब ,
     पाँव नही अब ये मुड़ते चलते ।
पग पग उठा पथ पे रखना ,
      पथ पे पग चिन्ह यही बनते ।
अभय सदा चल तू चलना  ,
     भय ज़ीवन लक्ष्य नही बनते ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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