*कनक मंजरी छंद*
शिल्प~4लघु+6भगण(211)+1गुरु]=23 वर्ण
चार चरण समतुकांत]
{1111+211+211+211
211+211+211+2}
मिलकर साथ सभी चलते ,
नित सर्जन देश तभी सजते ।
खिलकर साथ तरु फलते,
नव पुष्पित बाग सभी सजते ।
बढ़कर राह रहें चलते,
सत लक्ष्य सही तब ही मिलते ।
गढ़कर प्रीत नई गढ़ते ,
नव गीत सदा जब ही मिलते ।
बढ़ चल तू चलता चल ,
साथ सभी कम ही बढ़ते चलते ।
थक कर तू थमता कब ,
पाँव नही अब ये मुड़ते चलते ।
पग पग उठा पथ पे रखना ,
पथ पे पग चिन्ह यही बनते ।
अभय सदा चल तू चलना ,
भय ज़ीवन लक्ष्य नही बनते ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
शिल्प~4लघु+6भगण(211)+1गुरु]=23 वर्ण
चार चरण समतुकांत]
{1111+211+211+211
211+211+211+2}
मिलकर साथ सभी चलते ,
नित सर्जन देश तभी सजते ।
खिलकर साथ तरु फलते,
नव पुष्पित बाग सभी सजते ।
बढ़कर राह रहें चलते,
सत लक्ष्य सही तब ही मिलते ।
गढ़कर प्रीत नई गढ़ते ,
नव गीत सदा जब ही मिलते ।
बढ़ चल तू चलता चल ,
साथ सभी कम ही बढ़ते चलते ।
थक कर तू थमता कब ,
पाँव नही अब ये मुड़ते चलते ।
पग पग उठा पथ पे रखना ,
पथ पे पग चिन्ह यही बनते ।
अभय सदा चल तू चलना ,
भय ज़ीवन लक्ष्य नही बनते ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें