टूटती कसम किनारों की ।
छूटती पतवार सहारों की ।
है बेख़ौफ़ ना-नाख़ुदा वो,
डूबती कश्ती सहारों की ।
है तर-ब-तर समंदर यूँ तो ,
चाहतें वारिश-ए-बहारों की ।
है सींचती रही अश्क़ दामन को ,
चाहत नहीं निग़ाह नजारों की ।
है रूठकर चला सफ़र पर वो ,
कैसी नियत वक़्त की बयारों की ।
है देखता नही मुड़कर जो ,
चाहत नही कोई इशारों की ।
है चल पड़ा आखिर वो "निश्चल" ,
चाहत नहीं जिसे राहों की ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(102)
छूटती पतवार सहारों की ।
है बेख़ौफ़ ना-नाख़ुदा वो,
डूबती कश्ती सहारों की ।
है तर-ब-तर समंदर यूँ तो ,
चाहतें वारिश-ए-बहारों की ।
है सींचती रही अश्क़ दामन को ,
चाहत नहीं निग़ाह नजारों की ।
है रूठकर चला सफ़र पर वो ,
कैसी नियत वक़्त की बयारों की ।
है देखता नही मुड़कर जो ,
चाहत नही कोई इशारों की ।
है चल पड़ा आखिर वो "निश्चल" ,
चाहत नहीं जिसे राहों की ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 5(102)
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