मिट जाए वो सत्य कैसा ।
अंनत अंतरिक्ष तम जैसा ।
जलता भानू अपने ही ताप से,
निशा बिन शशि शीतल कैसा ।
मचली लहरें उसके आँचल में ,
लहरों बिन पयोधी कैसा ।
सरल नही कभी ज़ीवन ,
संघर्षो बिन ज़ीवन कैसा ।
सिंचित मन से मन की अनबन ,
मन से मन का ये सौदा कैसा ।
भाग रहा है अपने आप से ,
आपस का ये धोका कैसा ।
धूम रही है धरा निरन्तर ,
फिर दिनकर का धोका कैसा ।
"निश्चल" रहा सदा ही वो तो ,
मिलता फिर भी चलते जैसा ।
सरल नही कभी ज़ीवन ,
संघर्षो बिन ज़ीवन कैसा ।
.. विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(93)
अंनत अंतरिक्ष तम जैसा ।
जलता भानू अपने ही ताप से,
निशा बिन शशि शीतल कैसा ।
मचली लहरें उसके आँचल में ,
लहरों बिन पयोधी कैसा ।
सरल नही कभी ज़ीवन ,
संघर्षो बिन ज़ीवन कैसा ।
सिंचित मन से मन की अनबन ,
मन से मन का ये सौदा कैसा ।
भाग रहा है अपने आप से ,
आपस का ये धोका कैसा ।
धूम रही है धरा निरन्तर ,
फिर दिनकर का धोका कैसा ।
"निश्चल" रहा सदा ही वो तो ,
मिलता फिर भी चलते जैसा ।
सरल नही कभी ज़ीवन ,
संघर्षो बिन ज़ीवन कैसा ।
.. विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(93)
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