चामर छंद
212 121 212 121 212
7गुरु लघु+गुरु
नेह बांधता सच्चा कच्चा
सु-सूत हाथ में ।
दे रहा अखंड मान प्राण
ज्ञात हाथ में।
बांधती अटूट प्यार आज
भ्रात रेशमी ।
फैलती उजाल लाज
रक्ष पात रेशमी ।
दे रही अमोघ आन भान
वो सहोदरा ।
है मिला रही अपार मान
वो सहोदरा ।
हे अटूट साथ प्राण का
अखंड आन सा ।
प्राण से निभात आन को
बना सु-प्रान सा।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
212 121 212 121 212
7गुरु लघु+गुरु
नेह बांधता सच्चा कच्चा
सु-सूत हाथ में ।
दे रहा अखंड मान प्राण
ज्ञात हाथ में।
बांधती अटूट प्यार आज
भ्रात रेशमी ।
फैलती उजाल लाज
रक्ष पात रेशमी ।
दे रही अमोघ आन भान
वो सहोदरा ।
है मिला रही अपार मान
वो सहोदरा ।
हे अटूट साथ प्राण का
अखंड आन सा ।
प्राण से निभात आन को
बना सु-प्रान सा।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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