*अंसबधा छंद*
222 221 111 112 22
आओ वामांगी सुखद निशि सजाने को ।
सांसों सी साजो सुर मधुर बनाने को ।
गीतों में ब्राजो तुम घुल मिल जाने को ।
प्राणों की थापें बनकर चल जाने को ।
वीणा तारों सी बन सुर ढल जाने को ।
छेड़ो रागों को मन धुन खिल जाने को ।
आ जाओ वामा सज मिलन सजाने को ।
ये भावों के अक्षर तुम पिघलाने को ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
222 221 111 112 22
आओ वामांगी सुखद निशि सजाने को ।
सांसों सी साजो सुर मधुर बनाने को ।
गीतों में ब्राजो तुम घुल मिल जाने को ।
प्राणों की थापें बनकर चल जाने को ।
वीणा तारों सी बन सुर ढल जाने को ।
छेड़ो रागों को मन धुन खिल जाने को ।
आ जाओ वामा सज मिलन सजाने को ।
ये भावों के अक्षर तुम पिघलाने को ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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