शनिवार, 1 सितंबर 2018

अंस बधा छंद आ जाओ वामांगी

*अंसबधा छंद*
222 221  111 112 22

आओ वामांगी सुखद निशि सजाने को ।
सांसों सी साजो    सुर मधुर बनाने को ।
गीतों में ब्राजो   तुम घुल मिल जाने को ।
प्राणों की थापें    बनकर चल जाने को ।

वीणा तारों सी  बन सुर ढल जाने को ।
छेड़ो रागों को मन धुन खिल जाने को ।
आ जाओ वामा सज मिलन सजाने को ।
ये भावों के अक्षर   तुम पिघलाने को ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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