जार जार जो हर बार चला है ।
फिर वो जो एक बार चला है ।
पी कर घूँट हलाहल मधु का ,
जीवन के भी जो पार चला है ।
निखर रहा है भोर तले भानु ,
किरण पथ को श्रृंगार चला है ।
तम की अभिलाषा में भी,
चँदा तारों का हार मिला है ।
चलकर पथ जीवन पर ही ,
स्वीकारित प्रतिकार मिला है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(113)
फिर वो जो एक बार चला है ।
पी कर घूँट हलाहल मधु का ,
जीवन के भी जो पार चला है ।
निखर रहा है भोर तले भानु ,
किरण पथ को श्रृंगार चला है ।
तम की अभिलाषा में भी,
चँदा तारों का हार मिला है ।
चलकर पथ जीवन पर ही ,
स्वीकारित प्रतिकार मिला है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(113)
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