माता की व्यथा ।
कभी न बनी कथा ।
जो लिख गए पुराण,
माँ को न मिला वो स्थान।
जिसकी वो अधिकारी थी ।
हाँ वो तो एक दुखियारी थी ।
क्या पाया की आशा से ,
कोसों दूर रही बेचारी सी ।
बस करती अपना काम ,
बिन जताए कोई अहसान ।
कर के सबको आगे ,
अपना सब कुछ है बांटे ।
बांट दिया तन मन को ,
कर दिया हवन जीवन को ।
सींच लहू से अपने ,
आँगन की फुलवारी ।
करती अनन्त यात्रा की तैयारी ,
बस लेकर इस आशा को ,
फूलों के हर दम खिलने की ,
एक अभिलाषा को ।
..विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(105)
Blog post 29/8/18
कभी न बनी कथा ।
जो लिख गए पुराण,
माँ को न मिला वो स्थान।
जिसकी वो अधिकारी थी ।
हाँ वो तो एक दुखियारी थी ।
क्या पाया की आशा से ,
कोसों दूर रही बेचारी सी ।
बस करती अपना काम ,
बिन जताए कोई अहसान ।
कर के सबको आगे ,
अपना सब कुछ है बांटे ।
बांट दिया तन मन को ,
कर दिया हवन जीवन को ।
सींच लहू से अपने ,
आँगन की फुलवारी ।
करती अनन्त यात्रा की तैयारी ,
बस लेकर इस आशा को ,
फूलों के हर दम खिलने की ,
एक अभिलाषा को ।
..विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 5(105)
Blog post 29/8/18
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