562
प्रसन्नता भी एक चयन है ।
जीवन तो एक मधुवन है ।
चुनते क्यों दुःख आप ही ,
चयन कर्ता जब स्व-मन है ।
..
563
जरा ज़मीर अपना मैं गिरा लेता।
दौलत शोहरत मैं खूब कमा लेता ।
जीता रहता मैं अपनी ही ख़ातिर
अपनो की मैं निग़ाह भुला देता ।
....
564
चलता नही मन साथ कलम के ।
खाली रहे अब हाथ कलम के ।
सिकुड़ती रहीं कुलषित कुंठाएं ,
लिए बैठीं दाग माथ कलम के ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
(कुलषित- कुंठाएं ,)
(क्षुब्ध - अतृप्त भावनाएं)
प्रसन्नता भी एक चयन है ।
जीवन तो एक मधुवन है ।
चुनते क्यों दुःख आप ही ,
चयन कर्ता जब स्व-मन है ।
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563
जरा ज़मीर अपना मैं गिरा लेता।
दौलत शोहरत मैं खूब कमा लेता ।
जीता रहता मैं अपनी ही ख़ातिर
अपनो की मैं निग़ाह भुला देता ।
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564
चलता नही मन साथ कलम के ।
खाली रहे अब हाथ कलम के ।
सिकुड़ती रहीं कुलषित कुंठाएं ,
लिए बैठीं दाग माथ कलम के ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
(कुलषित- कुंठाएं ,)
(क्षुब्ध - अतृप्त भावनाएं)
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