सोमवार, 19 नवंबर 2018

मुक्तक 562/564

562
प्रसन्नता भी एक चयन है ।
जीवन तो एक मधुवन है ।
चुनते क्यों दुःख आप ही ,
चयन कर्ता जब स्व-मन है ।
..
563
जरा ज़मीर अपना मैं गिरा लेता।
दौलत शोहरत मैं खूब कमा लेता ।
जीता रहता मैं अपनी ही ख़ातिर 
अपनो की मैं निग़ाह भुला देता ।
.... 
564
चलता नही मन साथ कलम के ।
खाली रहे अब हाथ कलम के ।
सिकुड़ती रहीं कुलषित कुंठाएं ,
लिए बैठीं दाग माथ कलम के ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

(कुलषित-   कुंठाएं ,)
(क्षुब्ध -  अतृप्त भावनाएं)




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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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