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मैं ढूंढता रहा आप को आप में ।
मैं मिलता नही निग़ाह आब में ।
ठहरी रही शबनम हरी दूब पर ,
डुबो ज़िस्म अपना आफ़ताब में ।
राहें रहीं सब व्यर्थ बेकार में ।
चाहत रही नही जब राह में ।
चुकाता रहा मोल हर बात का ,
ज़िन्दगी रही मगर उधार में ।
उतर कर कलम खोता रहा,
खुद को खुद अपने आप में ।
जज़्बात की ऊसर जमीं पर ,
वोता रहा जरखेज अल्फ़ाज़ मैं ।
(जरखेज-उपजाऊ/उर्वर)
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी6(28)
मैं ढूंढता रहा आप को आप में ।
मैं मिलता नही निग़ाह आब में ।
ठहरी रही शबनम हरी दूब पर ,
डुबो ज़िस्म अपना आफ़ताब में ।
राहें रहीं सब व्यर्थ बेकार में ।
चाहत रही नही जब राह में ।
चुकाता रहा मोल हर बात का ,
ज़िन्दगी रही मगर उधार में ।
उतर कर कलम खोता रहा,
खुद को खुद अपने आप में ।
जज़्बात की ऊसर जमीं पर ,
वोता रहा जरखेज अल्फ़ाज़ मैं ।
(जरखेज-उपजाऊ/उर्वर)
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी6(28)
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