एक तस्वीर उतारी अल्फ़ाज़ की ।
जुबां गुजारिश रही आवाज़ की ।
खनके न तार मचलकर कोई,
ख़ामोश शरारत रही साज की ।
देखता रहा आसमान हसरत से,
हसरत परिंदा रही परवाज की ।
करते रहे रक़्स अश्क़ निग़ाहों में ।
टूटे घुँघरू ख़ामोश अदा रियाज की।
चला न कोई सितारा साथ चाँद के ,
डूबते चाँद ने मग़रिब की लाज की ।
.... *विवेक दुबे"निश्चल"*@..
डायरी 6(23)
जुबां गुजारिश रही आवाज़ की ।
खनके न तार मचलकर कोई,
ख़ामोश शरारत रही साज की ।
देखता रहा आसमान हसरत से,
हसरत परिंदा रही परवाज की ।
करते रहे रक़्स अश्क़ निग़ाहों में ।
टूटे घुँघरू ख़ामोश अदा रियाज की।
चला न कोई सितारा साथ चाँद के ,
डूबते चाँद ने मग़रिब की लाज की ।
.... *विवेक दुबे"निश्चल"*@..
डायरी 6(23)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें