रविवार, 18 नवंबर 2018

एक तस्वीर उतारी अल्फ़ाज़ की ।

एक तस्वीर उतारी अल्फ़ाज़ की ।
जुबां गुजारिश रही आवाज़ की ।

 खनके न तार मचलकर कोई,
 ख़ामोश शरारत रही साज की ।

देखता रहा आसमान हसरत से,
हसरत परिंदा रही परवाज की ।

करते रहे रक़्स अश्क़ निग़ाहों में ।
टूटे घुँघरू ख़ामोश अदा रियाज की।

चला न कोई सितारा साथ चाँद के ,
डूबते चाँद ने मग़रिब की लाज की ।

.... *विवेक दुबे"निश्चल"*@..
डायरी 6(23)

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