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उसने कहा तुनक कर ,
तुम क्या लिखते हो ।
मैंने कहा हँसकर ,
मैं क्या तुम लिखते हो ।
गढता हूँ जब शब्दों को ,
तब तुम ही तो दिखते हो ।
तुम्हे सहज रहा हूँ शब्दो में ,
जब तुम मुझसे मिलते हो ।
कशिश बड़ी है रिश्तों की ,
साँस साँस तुम तपते हो ।
कांप रहे उघड़े तन को ,
अचकन से तुम ढंकते हो ।
पाता एक आहट ताप भरी ,
शब्दों में तुम जब झांकते हो ।
कहता हूँ शब्द शब्द तुझको ,
मेरे शब्दों में तुम बसते हो ।
लिखता तुझको अक्षर अक्षर ,
हर अक्षर में तुम सजते हो ।
स्नेहिल सी एक ड़ोर बंधी है ,
तब ही तुम मुझपर हँसते हो ।
उसने कहा तुनक कर ,
तुम क्या लिखते हो ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(31)
उसने कहा तुनक कर ,
तुम क्या लिखते हो ।
मैंने कहा हँसकर ,
मैं क्या तुम लिखते हो ।
गढता हूँ जब शब्दों को ,
तब तुम ही तो दिखते हो ।
तुम्हे सहज रहा हूँ शब्दो में ,
जब तुम मुझसे मिलते हो ।
कशिश बड़ी है रिश्तों की ,
साँस साँस तुम तपते हो ।
कांप रहे उघड़े तन को ,
अचकन से तुम ढंकते हो ।
पाता एक आहट ताप भरी ,
शब्दों में तुम जब झांकते हो ।
कहता हूँ शब्द शब्द तुझको ,
मेरे शब्दों में तुम बसते हो ।
लिखता तुझको अक्षर अक्षर ,
हर अक्षर में तुम सजते हो ।
स्नेहिल सी एक ड़ोर बंधी है ,
तब ही तुम मुझपर हँसते हो ।
उसने कहा तुनक कर ,
तुम क्या लिखते हो ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(31)
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