प्रफुल्लित हुए नयन ,
जब जब उसको देखा ।
शब्दों की शब्दो के,
बीच रही फिर भी रेखा ।
नेह निमंत्रण नयनों का ,
नयनो ने नयनों को टोका ।
मूक रहे अधर हरदम ही ,
शब्दों ने शब्दो को रोका ।
भाव विकल पल मन के ,
पल पल छण को खोता ।
नयन रहे नम हर दम ही ,
पलकों ने नम को सोखा ।
फूटें नव अंकुर भावों के ,
भाव तले मन को वोता ।
जीव चला जीवन लेकर ,
"निश्चल" चल देता मौका ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(24)
जब जब उसको देखा ।
शब्दों की शब्दो के,
बीच रही फिर भी रेखा ।
नेह निमंत्रण नयनों का ,
नयनो ने नयनों को टोका ।
मूक रहे अधर हरदम ही ,
शब्दों ने शब्दो को रोका ।
भाव विकल पल मन के ,
पल पल छण को खोता ।
नयन रहे नम हर दम ही ,
पलकों ने नम को सोखा ।
फूटें नव अंकुर भावों के ,
भाव तले मन को वोता ।
जीव चला जीवन लेकर ,
"निश्चल" चल देता मौका ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(24)
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