रविवार, 18 नवंबर 2018

प्रफुल्लित हुए नयन ,

 प्रफुल्लित हुए नयन ,
    जब जब उसको देखा ।

शब्दों की शब्दो के,
   बीच रही फिर भी रेखा ।

 नेह निमंत्रण नयनों का ,
     नयनो ने नयनों को टोका ।

मूक रहे अधर हरदम ही ,
   शब्दों ने शब्दो को रोका ।

 भाव विकल पल मन के ,
     पल पल छण को खोता ।

  नयन रहे नम हर दम ही ,
       पलकों ने नम को सोखा ।

 फूटें नव अंकुर भावों के ,
         भाव तले मन को वोता ।

 जीव चला जीवन लेकर ,
        "निश्चल" चल देता मौका ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(24)

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