रविवार, 18 नवंबर 2018

पल पल के पल ।

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पल पल के पल ।
 पलको पर ये पल  ।

 आज तले वो बीते ,
 गुजरे आते जो कल ।

 छिटक चाँदनी चँदा से,
 निहार चली जमीं तल ।

  कर शीत हृदय धरा का ,
  रुन्दी कदम अगले पल ।

    पल पल के पल ।
    पलको पर ये पल  ।

 उदित चला दिनकर ,
 लेकर नव चेतन बल ।

 दे चेतन जड़ चेतन को,
 साँझ तले जाता छल ।

    पल पल के पल ।
    पलको पर ये पल  ।

   जीवन भृमित आभा से ,
   खो जाता जीवन में ढल ।

   सत्य मिला जब कोई ,
  जीवन जीव गया निकल ।

   पल पल के पल ।
    पलको पर ये पल  ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@.
डायरी 6(27)

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