शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

शेष रहे अनुबंधों से रिश्ते ।

शेष रहे अनुबंधों से रिश्ते ।
टूट रहे तटबंधों से रिश्ते ।

         सरल नही अब कोई कहीं ,
         अब पलते छल छंदों से रिश्ते ।

स्नेहिल महक उठे नही कोई ,
अब षडयंत्रो की गंधो से रिश्ते ।

      शेष रहे अनुबंधों से रिश्ते ।
      टूट रहे तटबंधों से रिश्ते ।

स्वत्व तत्व की अभिलाषा में ,
अहम तले दबे द्वन्दों से रिश्ते ।

        स्वार्थ भाव की तपन तले ,
        उड़ते अपने रंगों से रिश्ते ।

शेष रहे अनुबंधों से रिश्ते ।
टूट रहे तटबंधों से रिश्ते ।

      ..विवेक दुबे"निश्चल"@...

(स्वत्व-अधिकार)



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