शेष रहे अनुबंधों से रिश्ते ।
टूट रहे तटबंधों से रिश्ते ।
सरल नही अब कोई कहीं ,
अब पलते छल छंदों से रिश्ते ।
स्नेहिल महक उठे नही कोई ,
अब षडयंत्रो की गंधो से रिश्ते ।
शेष रहे अनुबंधों से रिश्ते ।
टूट रहे तटबंधों से रिश्ते ।
स्वत्व तत्व की अभिलाषा में ,
अहम तले दबे द्वन्दों से रिश्ते ।
स्वार्थ भाव की तपन तले ,
उड़ते अपने रंगों से रिश्ते ।
शेष रहे अनुबंधों से रिश्ते ।
टूट रहे तटबंधों से रिश्ते ।
..विवेक दुबे"निश्चल"@...
(स्वत्व-अधिकार)
टूट रहे तटबंधों से रिश्ते ।
सरल नही अब कोई कहीं ,
अब पलते छल छंदों से रिश्ते ।
स्नेहिल महक उठे नही कोई ,
अब षडयंत्रो की गंधो से रिश्ते ।
शेष रहे अनुबंधों से रिश्ते ।
टूट रहे तटबंधों से रिश्ते ।
स्वत्व तत्व की अभिलाषा में ,
अहम तले दबे द्वन्दों से रिश्ते ।
स्वार्थ भाव की तपन तले ,
उड़ते अपने रंगों से रिश्ते ।
शेष रहे अनुबंधों से रिश्ते ।
टूट रहे तटबंधों से रिश्ते ।
..विवेक दुबे"निश्चल"@...
(स्वत्व-अधिकार)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें