शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

मुक्तक 665/669

664
सफ़र इन राहों पर अनन्त विस्तार सा ।
 मिलता हर मोड़ पर जीवन श्रृंगार सा ।
 मिलता पथ उपवन तपन ढ़ले ही ,
 हर्षित पथ तृष्णाओं के तृसकर सा ।

   ..विवेक दुबे"निश्चल"@...
666
हर हाल बे-हाल कचोटते रहे ।
कुछ ख़ुश ख़याल खोजते रहे ।
चलते रहे सफ़र जिंदगी के ,
ये दिल हाल मगर रोज से रहे ।

.. विवेक दुबे"निश्चल"@...
667
यह कैसे कल की चाहत है ।
 आज लम्हा लम्हा घातक है ।
उठ रहे हैं तूफ़ान खमोशी के ,
साहिल पे नही कोई आहट है ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@...
668
शेष नही कही समर्पण है ।
मन कोने में टूटा दर्पण है ।
आश्रयहीन अभिलाषाएं ,
अश्रु नीर नयनो से अर्पण है ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@.
669
एक उम्र की तलाश सी ।
एक अधूरी सी आस सी ।
गुजरता रहा उम्र कारवां,
साथ लिए हसरत प्यास सी ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

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