..चुनाव परिदृश्य...
एक मतदाता का मन पढ़ने का प्रयास
=================
मौन रहा फिर भी बोल रहा हूँ ।
अंधियारों सा मैं डोल रहा हूँ ।
पसरा तम सरपट ले करबट ,
तमस तन तम घोल रहा हूँ ।
व्यथित नही सृष्टि फिर भी ,
तम को तम से तौल रहा हूँ ।
चलता हूँ फिर भी दृष्टि लेकर ,
निःशब्द रहा पर बोल रहा हूँ ।
रहा समय सदा दृष्टा बनकर ,
भेद समय पर खोल रहा हूँ ।
दाग लगे है दामन में दामों के ।
हरदम फिर भी अनमोल रहा हूँ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
एक मतदाता का मन पढ़ने का प्रयास
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मौन रहा फिर भी बोल रहा हूँ ।
अंधियारों सा मैं डोल रहा हूँ ।
पसरा तम सरपट ले करबट ,
तमस तन तम घोल रहा हूँ ।
व्यथित नही सृष्टि फिर भी ,
तम को तम से तौल रहा हूँ ।
चलता हूँ फिर भी दृष्टि लेकर ,
निःशब्द रहा पर बोल रहा हूँ ।
रहा समय सदा दृष्टा बनकर ,
भेद समय पर खोल रहा हूँ ।
दाग लगे है दामन में दामों के ।
हरदम फिर भी अनमोल रहा हूँ ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
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