रविवार, 18 नवंबर 2018

तलाश सी फुर्सत की ।

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तलाश सी फुर्सत की ।
वक़्त की ग़ुरबत सी ।

देखते ही रहे आईना ,
निग़ाह से हसरत की ।

आरजू-ऐ-जिंदगी रही ,
 वक़्त की करबट सी ।

 चाहकर भी न मिली ,
चाहत सी मोहलत की ।

 तलाशता रहा सफ़ऱ ,
 शोहरत की दौलत सी ।

.... *विवेक दुबे"निश्चल"*@...
डायरी 6(30)

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