सोमवार, 31 दिसंबर 2018

गुजर गया जो वो जाने दो ।

गुजर गया जो वो जाने दो ।
नव आगंतुक को आने दो ।

टीस रहे न कोई मन में ,
एक जशन नया मनाने दो ।

गुजरे से आधे किस्सों से ,
फिर रिस्ता नया बनाने दो ।

नेह नयन के सागर से ,
प्रीत सीप चुन लाने दो ।

बैर भाव को तज कर ,
प्रेम राग गीत गाने दो ।

नये बरस की छांव तले ,
नव पल सुखद बिताने दो ।

धूप सुनहरे जीवन में ,
जीवन को बिसराने दो ।

आने दो आकर जाने दो ,
"निश्चल"चल कहलाने दो।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(102)

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...