बस साथ यहीं तक,
रिन्दों से रिन्दों का ।
खाली मयख़ाना साक़ी ,
फिर बाशिंदों का ।
आते है सब बस ,
एक रात बिताने को ,
रहा नहीं कहीं ठिकाना ,
एक कभी परिंदों का ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(103)
रिन्दों से रिन्दों का ।
खाली मयख़ाना साक़ी ,
फिर बाशिंदों का ।
आते है सब बस ,
एक रात बिताने को ,
रहा नहीं कहीं ठिकाना ,
एक कभी परिंदों का ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(103)
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