बुधवार, 2 जनवरी 2019

मुक्तक

672
तू रंजिशों का मलाल न कर ।
दुनियाँ को बेमिशाल न कर ।
चलता चल तू अपनी धुन में ,
इन रास्तों का तू ख्याल न कर ।
...673
है नही अहसान दुनियाँ में ।
 क्या यही ईमान दुनियाँ में ।
 करता इरादे मुक़म्मिल जो ,
 है वो भी मेहमान दुनियाँ में ।
....674
हम जो भी यहाँ पे लिखेगें ।
क्या वो निग़ाह से दिखेगें ।
न बिखेर सितारे ज़ज्बात के,
वो टूटकर फ़लक से गिरेगें ।
....675
रुक गया मुसाफ़िर चलते चलते ।
ढल ही गया जो दिन ढ़लते ढ़लते ।
रह गये क्यूँ फांसले चंद कदमों के,
क्यूँ रह गई मंजिल मिलते मिलते ।
....676
कहता रहा जमाना वाह क्या बात है ।
दुनियाँ से बस इतना ही रहा साथ है ।
चलता रहा चाँद सितारों को लेकर ,
यूँ गुजरती रही "निश्चल"स्याह रात है ।
.... 677
ग़ुम हुए साये भी यहाँ इस कदर ।
पराया सा लगता है अपना शहर ।
है नही आब आँख में अब कोई ,
बेअसर सा हुआ हर निग़ाह असर ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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