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ईमान भी अब आज हाँफता है ।
मैं कैसे कहुँ के मुझे आस्था है ।
है नहीं कहीं चौराहे फिर भी ,
बदलता सा हर एक रास्ता है ।
तंग सा रहा ईमान भी ईमान से ,
सच रहा आज क्युं बे-वास्ता है ।
स्याह से मेरे शहर के उजलों में ,
फ़िक़्र दिल अपनी तलाशता है ।
ख़ामोश निग़ाहों से देखता चलूँ ,
"निश्चल" इतना ही रहा वास्ता है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(110)
ईमान भी अब आज हाँफता है ।
मैं कैसे कहुँ के मुझे आस्था है ।
है नहीं कहीं चौराहे फिर भी ,
बदलता सा हर एक रास्ता है ।
तंग सा रहा ईमान भी ईमान से ,
सच रहा आज क्युं बे-वास्ता है ।
स्याह से मेरे शहर के उजलों में ,
फ़िक़्र दिल अपनी तलाशता है ।
ख़ामोश निग़ाहों से देखता चलूँ ,
"निश्चल" इतना ही रहा वास्ता है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(110)
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