बुधवार, 2 जनवरी 2019

ईमान भी अब आज हाँफता है ।

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ईमान भी अब आज हाँफता है ।
मैं कैसे कहुँ के मुझे आस्था है ।

 है नहीं कहीं चौराहे फिर भी ,
 बदलता सा हर एक रास्ता है ।

तंग सा रहा ईमान भी ईमान से ,
 सच रहा आज क्युं बे-वास्ता है ।

 स्याह से मेरे शहर के उजलों में ,
 फ़िक़्र दिल अपनी तलाशता है ।

ख़ामोश निग़ाहों से देखता चलूँ ,
"निश्चल" इतना ही रहा वास्ता है ।

   .... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(110)

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