बुधवार, 2 जनवरी 2019

टकराता साहिल से , तूफ़ां अक्सर क्यूँ है ।

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2    2 2  1 ,  2  2   2 1 ,  2 2    21
टकराता साहिल से , तूफ़ां अक्सर क्यूँ है ।
आजमाता हालात,ख़ामोश मुक़द्दर क्यूँ है  ।

बहता है दरिया ,जो सैलाब के लिबास में ,
सिमेटता दामन में, आखिर समंदर क्यूँ है ।

गिरता शाख से, पत्ता जमीं की खातिर ,
ग़ुम होता फिर, कही वो उड़कर क्यूँ है।

 खिलते है लफ्ज़ कलम, फूल की तरह ,
 अल्फ़ाज़ जुबां , आते बिखरकर क्यूँ है ।

वो कहता रहा,शाम-ए-ग़जल दीवाने सा ,
असरात लफ्ज़ रहे ,मगर मुख़्तसर क्यूँ हैं ।(संक्षिप्त)

पिरोकर हर्फ़ हर्फ़ , हक़ीक़त-ए-हालात में ,
समझता वो नादां , आपको कमतर क्यूँ है ।

झुक जाता हरदम ,सामने शिद्दत से उसके ,
"निश्चल"उस संग का,होंसला मयस्सर क्यूँ हैं ।
 .... विवेक दुबे"निश्चल"@....



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