697
2 2 2 1 , 2 2 2 1 , 2 2 21
टकराता साहिल से , तूफ़ां अक्सर क्यूँ है ।
आजमाता हालात,ख़ामोश मुक़द्दर क्यूँ है ।
बहता है दरिया ,जो सैलाब के लिबास में ,
सिमेटता दामन में, आखिर समंदर क्यूँ है ।
गिरता शाख से, पत्ता जमीं की खातिर ,
ग़ुम होता फिर, कही वो उड़कर क्यूँ है।
खिलते है लफ्ज़ कलम, फूल की तरह ,
अल्फ़ाज़ जुबां , आते बिखरकर क्यूँ है ।
वो कहता रहा,शाम-ए-ग़जल दीवाने सा ,
असरात लफ्ज़ रहे ,मगर मुख़्तसर क्यूँ हैं ।(संक्षिप्त)
पिरोकर हर्फ़ हर्फ़ , हक़ीक़त-ए-हालात में ,
समझता वो नादां , आपको कमतर क्यूँ है ।
झुक जाता हरदम ,सामने शिद्दत से उसके ,
"निश्चल"उस संग का,होंसला मयस्सर क्यूँ हैं ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
2 2 2 1 , 2 2 2 1 , 2 2 21
टकराता साहिल से , तूफ़ां अक्सर क्यूँ है ।
आजमाता हालात,ख़ामोश मुक़द्दर क्यूँ है ।
बहता है दरिया ,जो सैलाब के लिबास में ,
सिमेटता दामन में, आखिर समंदर क्यूँ है ।
गिरता शाख से, पत्ता जमीं की खातिर ,
ग़ुम होता फिर, कही वो उड़कर क्यूँ है।
खिलते है लफ्ज़ कलम, फूल की तरह ,
अल्फ़ाज़ जुबां , आते बिखरकर क्यूँ है ।
वो कहता रहा,शाम-ए-ग़जल दीवाने सा ,
असरात लफ्ज़ रहे ,मगर मुख़्तसर क्यूँ हैं ।(संक्षिप्त)
पिरोकर हर्फ़ हर्फ़ , हक़ीक़त-ए-हालात में ,
समझता वो नादां , आपको कमतर क्यूँ है ।
झुक जाता हरदम ,सामने शिद्दत से उसके ,
"निश्चल"उस संग का,होंसला मयस्सर क्यूँ हैं ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें