हम ये नव वर्ष क्यों स्वीकार करते हैं ।
गोरे प्रहार का क्यों त्योहार करते है ।
ठिठुरता है जहां जहाँ एक और जाड़े में ,
वहां उत्सव सा क्यों व्यवहार करते है ।
गुजरने दो जरा दो माह जाड़ों के ।
बसंत की आती ही बाहरो के ।
होगी पुलकित सृष्टि शृंगारित धरा ।
तब रूप योवन धरा ने धरा ।
करे स्वागत तब नव बसंत का ।
नव क्रम चले फिर इस अंनत का ।
तब मनाये नव वर्ष उल्लास से ।
बढ़ चले फिर पुलकित आस से ।
माँ शारदे को नमन करें ।
शक्ति से हम जीवन भरें ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
गोरे प्रहार का क्यों त्योहार करते है ।
ठिठुरता है जहां जहाँ एक और जाड़े में ,
वहां उत्सव सा क्यों व्यवहार करते है ।
गुजरने दो जरा दो माह जाड़ों के ।
बसंत की आती ही बाहरो के ।
होगी पुलकित सृष्टि शृंगारित धरा ।
तब रूप योवन धरा ने धरा ।
करे स्वागत तब नव बसंत का ।
नव क्रम चले फिर इस अंनत का ।
तब मनाये नव वर्ष उल्लास से ।
बढ़ चले फिर पुलकित आस से ।
माँ शारदे को नमन करें ।
शक्ति से हम जीवन भरें ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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