कर चली अब पार अठारा वो ।
उन्नीस में अब कोई सहारा हो ।
कदम पड़े है योवन आँगन में ,
पग पग राह कोई निहारा हो ।
जो छोड़ चली अब पीहर को ,
ज्यों साजन ने उसे पुकारा हो ।
रूप शृंगारित मादक योवन तन ,
मकरंद मद अंग अंग उतारा हो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(101)
उन्नीस में अब कोई सहारा हो ।
कदम पड़े है योवन आँगन में ,
पग पग राह कोई निहारा हो ।
जो छोड़ चली अब पीहर को ,
ज्यों साजन ने उसे पुकारा हो ।
रूप शृंगारित मादक योवन तन ,
मकरंद मद अंग अंग उतारा हो ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(101)
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