सोमवार, 31 दिसंबर 2018

कर चली अब पार अठारा वो ।

कर चली अब पार अठारा वो ।
उन्नीस में अब कोई सहारा हो ।

कदम पड़े है योवन आँगन में ,
पग पग राह कोई निहारा हो ।

जो छोड़ चली अब पीहर को ,
ज्यों साजन ने उसे पुकारा हो ।

रूप शृंगारित मादक योवन तन ,
मकरंद मद अंग अंग उतारा हो ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(101)

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