बुधवार, 2 जनवरी 2019

मुक्तक

679
तपते निर्जन में एक छाँव बना देना ।
आते जाते को एक ठाँव बना देना ।
भटके न कोई राही दुर्गम राहो पर ,
चलकर पथ पर तू पाँव बना देना ।
....680
ख़बर को ख़बर की ख़बर नही कोई ।
असर को असर का असर नही कोई ।
टूटे न होंसला ये मगर चलते चलते  ,
मंजिल का रास्ते पे जिकर नही कोई ।
....681
न कुछ गलत न कुछ कभी सही ।
रह गया सभी सब यही का यही ।
जीतता है तू क्यूँ इस जहान को ,
ये ज़िस्म भी तो साथ जाता नही ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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