दावे बड़े बड़े, वास्तविकता कुछ और है ।
पर मेरा, एक यह भी तो, सच और है ।
लाऊँ कहाँ से वो मन ,
न हो जो मन बे-मन ।
सपनो के सौदागर सँग,
यह कैसी अनबन ।
रूखी रोटी रूखे तन ,
सन्नाटे से घिरता आँगन ।
ख़ामोश खड़ा दलहानो में ,
सूना चौका , रीते सारे बर्तन ।
पीकर अश्रु घूँट आशाओं के,
कैसे ठंडी हो ,यह उर की अगन ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@ ...
पर मेरा, एक यह भी तो, सच और है ।
लाऊँ कहाँ से वो मन ,
न हो जो मन बे-मन ।
सपनो के सौदागर सँग,
यह कैसी अनबन ।
रूखी रोटी रूखे तन ,
सन्नाटे से घिरता आँगन ।
ख़ामोश खड़ा दलहानो में ,
सूना चौका , रीते सारे बर्तन ।
पीकर अश्रु घूँट आशाओं के,
कैसे ठंडी हो ,यह उर की अगन ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@ ...
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