सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

टटोलते अँधियारों को

दिए जले जो रातों को ,
 खोजते अहसासों को ।
  जलाकर अपनी बाती ,
  टटोलते अँधियारों को ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"..@

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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