सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

टाँग

विषय रचना -- टाँग
 मुक्त छन्द...

देखा उसने कुछ निशानों में ।
 अटका भटका तहखानों में ।
 लग जाए कुछ हाथ मेरे भी
 टंगड़ी मारी टूटे मर्तबानों में ।

   हाथ लगी न फूटी पाई ।
     टूटी टाँग चाल गवाई ।
  खर्च हुई गाँठ की पाई पाई।
    पड़ा रहा हफ़्तों चार पाई। 
  
 सोचे पड़ा पड़ा चार पाई।
 मैं बातों में क्यों आया भाई।
 क्यों मैंने उस को मोहर लगाई,
 अब तो राम दुहाई राम दुहाई।

 लड़ते हैं बस अब तो सब ।
 खींच तान की छिड़ी लड़ाई।
 चादर मिला न मिली रजाई ,
 अच्छे दिन की भली चलाई । 
 ....विवेक दुबे "निश्चल"©...

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...