प्रश्न उनका हमसे ...
सपनों का भारत कैसा हो ?
एक प्रश्न हमारा उनसे ...
देख सकें स्वप्न यामनी संग,
बैसा आज सबेरा तो हो ।
वो बातें थीं बस बातों की ।
आजादी थी बस नारों सी ।
बसन्त की रातें भी अब ,
पोष की सर्द रातों सी ।
स्वार्थ की नीतियों तले ,
दब गई सारे परमार्थ सी।
खाते फूँक फूँक कर,
हम अब वासी भात सी।
फेंको तुम औद्योगिक कचरा ,
खूब नदी समन्दर में ।
कहते हो गणपति विसर्जन,
करना है घर अंदर में ।
फैलता है प्रदूषण कुछ ,
मूर्तियों के विसर्जन से ,
क्या अमृत घुला है ,
उद्योगों के उत्सर्जन में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
सपनों का भारत कैसा हो ?
एक प्रश्न हमारा उनसे ...
देख सकें स्वप्न यामनी संग,
बैसा आज सबेरा तो हो ।
वो बातें थीं बस बातों की ।
आजादी थी बस नारों सी ।
बसन्त की रातें भी अब ,
पोष की सर्द रातों सी ।
स्वार्थ की नीतियों तले ,
दब गई सारे परमार्थ सी।
खाते फूँक फूँक कर,
हम अब वासी भात सी।
फेंको तुम औद्योगिक कचरा ,
खूब नदी समन्दर में ।
कहते हो गणपति विसर्जन,
करना है घर अंदर में ।
फैलता है प्रदूषण कुछ ,
मूर्तियों के विसर्जन से ,
क्या अमृत घुला है ,
उद्योगों के उत्सर्जन में ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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